जब मन की मिट्टी गीली हो
रंग रोशिनी पिरो दीजिए
फिर रात हो कितनी भी गहरी
अँधेरा न हो पाएगा
जो सीख गऐ फाँद जाना
कोई भी गड्ढा , गहरा - मैला
तो पकी चिकनी सड़कों का मोह
न तुमको कभी सताएगा
ये शनासाई की उम्मीदें
मरासिमों के कंधो का सुकूत
फिर मानूस ख़ंजर ऐसे भी
न सम्भला तो मर जाएगा
(शनासाई - acquaintance
मरासिम - relations
सुकूत-silence, peace
मानूस -associated, familiar, intimate, friendly)
जब उम्र यूँ बढ़ती जाएगी
और साल गुज़रते जाएँगे
अपने पैरों में दम रखना
कोई हाथ पकड़ न चलाएगा
रस्ते तो मुश्किल होते ही हैं
रस्ते में कब तक और रहें
रस्ता जहाँ पे ख़त्म हुआ
तो लौट के घर ही आएगा