Thursday, 27 November 2014

तुमने





 मैं जो भी हूँ
जो भी बन जाऊँगी
तुम्हारी ही मेहरबानियों का अंजाम है...
तुम्हारे नाम पे ..
एक कलम उठाई , स्याही उड़ेली
तुम्हारी क़ुर्बत ने रंग दिखाया ...
अब ये "आज" ही अक़बर हो गया है
और फिर ...
अहमक़ से ज़माने उतर आए कागज़ पे
पूरा मंज़र अफ़रोज़ है
एक तुम जानो एक मैं
बाकी मुझे सिर्फ़ रुख्सती की उम्मीद है
सब तुमने बुना और गूंथ दिया है
इस तरह मेरी दुकान चलाने का
सामान जुटाया तुमने ....
अनजाने ही सही
फ़कीर का घर बसाया तुमने।




(कुर्बत - Vicinity
  अहमक़ - fool
  अफ़रोज़ - shining, bright )

Monday, 24 November 2014

हम तुम्हे बहुत याद करते हैं 

हम तुम्हे बहुत याद करते हैं
जाने कहाँ गुम  गई हो
हम फ़रियाद करते हैं
हम तुम्हे बहुत याद करते हैं

देर तक अलसाये न बिस्तर को कहना अलविदा
मासूमियत का दौर , मीठी झिड़कियों का काफिला
उस वक़्त जब हम सिर्फ ठन्डे पानी से डरते थे
उस सुबह और उन नखरों पे मरते हैं
हम तुम्हे बहुत याद करते हैं

धूल में अब कपड़े नहीं सनते ,
मीठी गोली पे मन नहीं मचलते
कीचड़ को पानी से धो पाते थे
अब लोगों की नज़रो से बचने का जतन करते हैं
हम तुम्हे बहुत याद करते हैं 

Saturday, 15 November 2014

sleepless saturday#5




आधा चाँद और एक सूरज भी,
अधखिली कलियाँ कुछ शबनम.

बांसुरी की धुन से लिपटा एक साज़
,कुछ अधूरी पर मीठी आवाज़.

नन्ही आँखों में बड़े सपने,
 और कुछ खाली पन्नों वाली किताब.

कोई ला के मुझे दे एक मीठा सा सवाल
 एक नन्हा सा जवाब.

- by Siddharth Kumar Yadav

Saturday, 8 November 2014

Sleepless Saturday #4




ज़िन्दगी जो भी होती है ..

मुश्किल या आसान..

रंगीन या सुनसान..

अपनी या मेहमान..

बर्बाद या बने शान..

सब कुछ.....

मुझसे ही आदि-अंत है

ये मेरे ही भरम हैं

ज़िन्दगी  जो भी होती है....

सब मेरे ही करम हैं ।।