Friday, 24 October 2014

SLEEPLESS SATURDAY #3








इश्क़ ज़िंदा है और रहेगा मुझमें
फ़िज़ा की तरह ....
कौन हारा या जीता है
ये सवाल है
मौसम-ए-खिज़ां की तरह ....
मुक्कमल कुछ नहीं इस जहां में
हैं अगर कुछ तो वो हैं...
तेरे मेरे सीने में धड़कते अफ़साने
जैसे ठहर के बैठे हों
अपने आशियाने में पंछी
पर फड़फड़ाते ,
इल्तिज़ा की तरह ।


(खिज़ां - autumn, decay )

(Picture Courtesy : Jatin Sharma )

Tuesday, 21 October 2014

बदली है तो बस .....

गाँव तो हर कहीं के एक से हैं ,
एक सी मुस्कान , एक सा मुक़ाम
'ग़र बदली है तो बस ...
इंसान की सूरत ,
दिलों की फ़ितरत ,
राह के सन्नाटे ,
घी के बने परांठे ,
फूँस की छत ,
और अडान से झाँकने वाली
गौरैय्या के घौंसले की लत !

पंछियों के जागने का समय
सब जगह एक सा है ..
खेतों की रंगत पर भी
शक़ नहीं मुझको ...
बदली है तो बस ,
धरती के सीने पे उकेरी लकीर ,
कभी अनाज माँगने वाला फ़कीर ,
बैलों के घंटे की आवाज़ ,
मिट्टी को पसीने से सींचता जाबाज़ ,
शिकायतों का अपनापन ...
बुढापों में मौजूद बचपन !

बस जो बदली है ,
वो रूह की पहचान है ...
कहने को अब भी हम इंसान हैं
बाकी सब एक सा है ,
वही है....
जैसे चमकता , लीपा-पुता
सीना फुलाए खड़ा
अपनी ही तन्हाई से जूझता ..
एक ख़ाली मकान है !!

Wednesday, 15 October 2014

कहानी





हर मोड़ एक ही कहानी है 
दिल में समुन्दर, चेहरा रूमानी है 
मुझे नहीं है शौक़ , डगमगाने का 
मेरी राह ही पत्थर की निशानी है

महज़ एक खेल नहीं है 
ये मन बहलाने का ज़रिया 
मामूली मशीयतों का किस्सा 
ये छोटी सी ज़िंदगानी है 

सांसो पे भी लगा सकता था पहरे
तुझे सब हक़-हुक़ूमत थी 
पर जा.… तुझको भी आज़ादी 
मेरी ये मेहरबानी है 

कुछ ख़ास न हो बेशक़ 
पर है मुझको अभी तक याद 
तुम्हारे "हम" का सलीक़ा 
मेरे इश्क़ की ज़ुबानी है 

मुझे टूट जाने का ख़ौफ़ है 
तुम्हारी क्या ख़ता इसमें…!
था मेरे ख़्वाबों का वो मुजस्सम 
 ख़्वाबों का मुजीब ही बेमानी है 

जला कर कई रातें.....
मैंने जागने का हुनर पाया 
नहीं कुछ मुफ़्त मिलता ; है पता 
पर यहाँ हर दिन क़ुर्बानी है 

दे कर जिस्म-जान-ज़ीस्त भी 
कहाँ वो पा सकी जन्नत 
सुन.…! तेरी जन्नत तेरा आपा 
वो दूसरा , बस एक ग़ुस्ताख़ कहानी है 






( मशीयतों - will, wishes
   मुजस्सम - embodied, incarnate
   मुजीब - motive, reason )

Saturday, 11 October 2014

Sleepless Saturday #2

Tumhe kisso me bandh kar
Mehfooz rakh chodenge
panno aur kitabo ki god me ...
Tumhari hi tarah wo bhi fhir
gungi ban jaaengi..

Samjh nahi aata...
Kitabo ne tumse ye chuppi ka sabak seekha
ya tumne kitabo se !