इश्क़ ज़िंदा है और रहेगा मुझमें
फ़िज़ा की तरह ....
कौन हारा या जीता है
ये सवाल है
मौसम-ए-खिज़ां की तरह ....
मुक्कमल कुछ नहीं इस जहां में
हैं अगर कुछ तो वो हैं...
तेरे मेरे सीने में धड़कते अफ़साने
जैसे ठहर के बैठे हों
अपने आशियाने में पंछी
पर फड़फड़ाते ,
इल्तिज़ा की तरह ।
(खिज़ां - autumn, decay )
(Picture Courtesy : Jatin Sharma )
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