हर मोड़ एक ही कहानी है
दिल में समुन्दर, चेहरा रूमानी है
मुझे नहीं है शौक़ , डगमगाने का
मेरी राह ही पत्थर की निशानी है
महज़ एक खेल नहीं है
ये मन बहलाने का ज़रिया
मामूली मशीयतों का किस्सा
ये छोटी सी ज़िंदगानी है
सांसो पे भी लगा सकता था पहरे
तुझे सब हक़-हुक़ूमत थी
पर जा.… तुझको भी आज़ादी
मेरी ये मेहरबानी है
कुछ ख़ास न हो बेशक़
पर है मुझको अभी तक याद
तुम्हारे "हम" का सलीक़ा
मेरे इश्क़ की ज़ुबानी है
मुझे टूट जाने का ख़ौफ़ है
तुम्हारी क्या ख़ता इसमें…!
था मेरे ख़्वाबों का वो मुजस्सम
ख़्वाबों का मुजीब ही बेमानी है
जला कर कई रातें.....
मैंने जागने का हुनर पाया
नहीं कुछ मुफ़्त मिलता ; है पता
पर यहाँ हर दिन क़ुर्बानी है
दे कर जिस्म-जान-ज़ीस्त भी
कहाँ वो पा सकी जन्नत
सुन.…! तेरी जन्नत तेरा आपा
वो दूसरा , बस एक ग़ुस्ताख़ कहानी है
( मशीयतों - will, wishes
मुजस्सम - embodied, incarnate
मुजीब - motive, reason )
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