नहीं मायूसियों में यूँ ही घुलते जाइए
संभावनाओं का नगर है , चले आइये
किस्मतों पे लगे ताले की चाबी है जुनूं तेरा
जो कदम बढ़ाइये , तो रुक नहीं फिर जाइये
दिल लगाया है तो टूटने का डर नहीं करना
आने-जाने हैं ये लोग इनमें घर नहीं करना
बिन चोट खाए , न सीख पाए , ये हुनर कोई
जो इश्क़ है तो इश्क़ के सभी रिवाज़ निभाइए
शब-भर हैं बरसे बादल जैसे हैं कोई सपना
इन इतने अपनों में , जाने कौन है अपना !
मुस्कान लबों पे, चेहरे पे सादगी की रौनक़
बेदर्द ज़माने को यही हाल दिखाइए
दरगाह पे जो हैं बांधे मन्नतों के धागे
और दिए जलाए कितने उसकी जन्नतों के आगे
किसी झोंके से बुझ जाएं तो वहम नहीं करना
धागों के खुलने की आस में न उम्र गँवाइये
ये आज की बातें और ये आज के हम-तुम
मासूम किसी घाव पे , लग रहा मरहम
ये सिर्फ़ मेरा है , मुझमें पोशीदा सा शामिल
हर सफ़्हे कलम की स्याही में , इसको पाइए
एक उम्र मु'यस्सिर नहीं , क़र्ज़ चुकाने को
हर काम जो करते हो बस 'फ़र्ज़' निभाने को
कभी सिर्फ़ यूँ-ही हँस दीजिये , ज़िन्दगी तोहफ़ा है
पीछे छोड़ के सब दर्द-गुमां , सिर्फ़ आप आइये ..
अना-परस्त हैं आँखें , न मुड़ कर भी देखेंगी
सब सूखी यादें एक दिन , ये निकाल फेकेंगी
मेरी बेरुखी जब तुम कभी देखोगे तो जानोगे
एक जिस्म , कई इंसान हूँ , आप जान बचाइये !!
पोशीदा - invisible
मु'यस्सिर - effective
अना-परस्त - egoist
very well written keep it up
ReplyDeleteThanku so much Anurag ji .. :)
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