जैसे एक ही पल में सब समझने लगी हूँ....
रस्म-ओ-रिवाज़ , दुनिया-दारी
आखिर एक लड़ाई मैंने भी हारी
बोलने से पहले बहुत सोचने लगी हूँ
जाने कितनी रातें बेचैनी में जगी हूँ
पहले का हर ग़म तिफ़्ल सा जान पड़ता है
मेरा गुस्सा अब हर बात पे ज़िम्मेदारी से लड़ता है
ज़ेहन अब शाबाशी की राह नहीं ताकता
मेरी निसाबों से तेरा वज़ूद है झांकता
तेशा की नोक पे है ज़माने का इन्साफ
अब "बिन माँ के बच्चों" की गलतियां की जाएंगी माफ़ !
जाने कितने मश्वरों के क़र्ज़ भरने होंगे !
लफ्ज़ जुबां के सिरे पे ही ठहरने होंगे
मैं जो गिर जाऊं तो मुझे आप ही उठना होगा
खुद दवाई लगानी होगी , जो छिला घुटना होगा
वो नखरे मेरे , शिकायतें सब , कुछ बोलती नहीं
ये दुनिया कहाँ तेरे जैसी है , जो मुझे तोलती नहीं
अब कहाँ तेरी बाहों का झूलना होगा
लोग कहते हैं की अब घर को भूलना होगा
बाहें खोल देता है , जो थक के आओगे
वो घर ही भुलाओगे , तो कहाँ जाओगे !
ये फर्नीचर ,दीवार ,दरवाज़े,आचार का मर्तबान
सब बोलने लगे हैं , तेरी ही जुबान !
जन्नत बनाई ,पर वहाँ रहने वाला बाशिंदा ही नहीं
शहर में लगता है कोई अब ज़िंदा ही नहीं
बहुत आवाज़ें दी थीं , कितना चिल्लाई थी
पहली बार तूने ऐसी की रुस्वाई थी
मेरा खुदा नहीं है अब , कोई डर भी नहीं है साथ
नशेमन का नसीब , लो किस्मत के है हाथ
(नशेमन- the nest )
अब मेरे सर से ले कर पाँव तक, हर जगह तू है
सर का आसमान, तले ज़मीन, ये फ़िज़ा तू है
मुझे पता है , 'उसके' अद्ल की कमर हुई है टूटी
दिल के बहलाने को एक राह थी, वो भी निकली झूठी
(अद्ल- justice , equity , fairness )
कोई पूछे तो कह देती हूँ , 'ठीक हूँ मैं '
खिल्क़त के सवालों में कौन गँवाए समय !
(खिल्क़त- people, the world , दुनिया के लोग , सृष्टि )
सब न-महसूस कर देती हूँ ,खला ,दर्द ,फासुर्दा मिन्नतें
जाने कहाँ से आती हैं ऐसी हिम्मतें
तुझसे जुड़ी लकीर ढूंढ़ती रहती हूँ अपने हाथ
शायद तू आए, तुझसे वाबस्ता किसी ज़िक्र के साथ
अब क्या करूँ ! सब हार के ज़ाफ़रीन हो गई हूँ
देख ! तुझसे अल्हैदा हो कर , मैं कितनी ज़हीन हो गई हूँ !
(ज़ाफ़रीन- victorious )
रस्म-ओ-रिवाज़ , दुनिया-दारी
आखिर एक लड़ाई मैंने भी हारी
बोलने से पहले बहुत सोचने लगी हूँ
जाने कितनी रातें बेचैनी में जगी हूँ
पहले का हर ग़म तिफ़्ल सा जान पड़ता है
मेरा गुस्सा अब हर बात पे ज़िम्मेदारी से लड़ता है
ज़ेहन अब शाबाशी की राह नहीं ताकता
मेरी निसाबों से तेरा वज़ूद है झांकता
तेशा की नोक पे है ज़माने का इन्साफ
अब "बिन माँ के बच्चों" की गलतियां की जाएंगी माफ़ !
जाने कितने मश्वरों के क़र्ज़ भरने होंगे !
लफ्ज़ जुबां के सिरे पे ही ठहरने होंगे
मैं जो गिर जाऊं तो मुझे आप ही उठना होगा
खुद दवाई लगानी होगी , जो छिला घुटना होगा
वो नखरे मेरे , शिकायतें सब , कुछ बोलती नहीं
ये दुनिया कहाँ तेरे जैसी है , जो मुझे तोलती नहीं
अब कहाँ तेरी बाहों का झूलना होगा
लोग कहते हैं की अब घर को भूलना होगा
बाहें खोल देता है , जो थक के आओगे
वो घर ही भुलाओगे , तो कहाँ जाओगे !
ये फर्नीचर ,दीवार ,दरवाज़े,आचार का मर्तबान
सब बोलने लगे हैं , तेरी ही जुबान !
जन्नत बनाई ,पर वहाँ रहने वाला बाशिंदा ही नहीं
शहर में लगता है कोई अब ज़िंदा ही नहीं
पहली बार तूने ऐसी की रुस्वाई थी
मेरा खुदा नहीं है अब , कोई डर भी नहीं है साथ
नशेमन का नसीब , लो किस्मत के है हाथ
(नशेमन- the nest )
अब मेरे सर से ले कर पाँव तक, हर जगह तू है
सर का आसमान, तले ज़मीन, ये फ़िज़ा तू है
मुझे पता है , 'उसके' अद्ल की कमर हुई है टूटी
दिल के बहलाने को एक राह थी, वो भी निकली झूठी
(अद्ल- justice , equity , fairness )
कोई पूछे तो कह देती हूँ , 'ठीक हूँ मैं '
खिल्क़त के सवालों में कौन गँवाए समय !
(खिल्क़त- people, the world , दुनिया के लोग , सृष्टि )
सब न-महसूस कर देती हूँ ,खला ,दर्द ,फासुर्दा मिन्नतें
जाने कहाँ से आती हैं ऐसी हिम्मतें
तुझसे जुड़ी लकीर ढूंढ़ती रहती हूँ अपने हाथ
शायद तू आए, तुझसे वाबस्ता किसी ज़िक्र के साथ
अब क्या करूँ ! सब हार के ज़ाफ़रीन हो गई हूँ
देख ! तुझसे अल्हैदा हो कर , मैं कितनी ज़हीन हो गई हूँ !
(ज़ाफ़रीन- victorious )
Very informative, keep posting such good articles, it really helps to know about things.
ReplyDeleteThank you so much ! 🙏🏻😊
ReplyDeleteBehadd khubsurat
ReplyDeleteThank you so much .. keep reading :)
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