काश की मैं दोषी
और तुम ख़ुदा रहते
इस कहानी में तुम
हर इल्ज़ाम से जुदा रहते
इससे अच्छा तो वो
नासमझी का दौर ही था
मैं अपने नसीब पे
ख़ूब इतराया करती थी
ख़्वाबीदा , बेहोश
काशाने सजाया करती थी
हक़्क़-आशना की लेहरें
उजाड़ कर गई हैं
मुझे तख़्त से उतार के
बेज़ार कर गई हैं
कुछ नया नहीं
सब लम्हे फ़सुर्दा रहते
मेरे आज कल सब
तुम्हारे सपुर्दा रहते
मेरे आज कल सब
तुम्हारे सपुर्दा रहते
मैं टूटा सफीना
तुम नाख़ुदा रहते
काश ! की मैं दोषी
तुम ख़ुदा रहते
(काशाने - dwelling
हक्क़ -आशना— knowing the truth
सफ़ीना - boat
नाख़ुदा - sailor )
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