कोई जूनून चाहिए कोई फ़ितूर चाहिए
कामयाबी को गिर के उठने का दस्तूर चाहिए
मेरी आवारगी से न खौफ़ खा मालिक
तुझे लगाम पे है भरोसा भरपूर चाहिए
आपे में न भर के रखना कोई दर्द बेरुखी
अना अश्क़ की बह जानी ज़रूर चाहिए
मेरी कसकती नब्ज़ दबाने की उनकी थी ख़्वाहिश
खुद जीने को जिनके मिजाज़ को ग़ुरूर चाहिए
दूर टूट कर गिरता हुआ तारा नहीं रूह मेरी
चुभे तो लहू पी जाए , वो नूर चाहिए
मैं अँधेरा सही , कोई रंग न मुझपे फ़तह पाएगा
सफ़ेद को कालिख़ का बस एक कसूर चाहिए
तुम जो आए देखने मुड़ कर हाल मेरा एक दफ़े ही
तिफ़्ल दिल को जीने को और क्या हुज़ूर चाहिए
था एक पत्थर मेरा ख़ुदा और फ़ितरत निभाता दिल
ज़ख्म खाए बिना नहीं आदत ये होनी दूर चाहिए
है सच ! वो सख़्श न कर सकेगा मुझे माफ़ !
इस कुशाद-दिली को माँ-सा दिल मजबूर चाहिए
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