Wednesday 31 December 2014

नए साल... बस इतना करना






कुछ अनमोल से सपने और 
कुछ मस्सरतों के पल ,
ऐसा था जो गुज़र गया 
एक साल … 
कभी ज़द्दोज़हद और कुछ बे-अक्ल ,
और अब फिर तुम आए हो… 
कुछ उड़ने की ख़्वाहिश है 
अल्हड़ सी फ़रमाइश है ,
बस इतना तुम तस्लीम करना
भूखों का पेट भरना ,
बेघर को देना सर पे छत 
और मुस्कानें बेहद ,
सर्द मेहर दिलों  में सपने  
सब लगने लगें हमको अपने ,
आदमी को आदमी से यकदिली 
और आज़ादी  न सिर्फ कहने को मिली ,
और बस एक और गुज़ारिश है .... 
मेरी माँ को मर्ज़ का हल देना 
जिसने मिट्टी के चिरागों में 
करके रोशिनी माँगा मुझे 
उस कुशादा दिल को 
मुनव्वर कल देना 
नए साल 
मेरे लिए बस इतना करना 



(तस्लीम - acknowledge,
 सर्द मेहर - apathetic
 कुशादा दिल - big-hearted
मुनव्वर- illuminated, bright )