Tuesday 29 October 2019

जब मन की मिट्टी गीली हो

जब मन की मिट्टी गीली हो 
रंग रोशिनी पिरो दीजिए 
फिर रात हो कितनी भी गहरी 
अँधेरा हो पाएगा 

जो सीख गऐ फाँद जाना 
कोई भी गड्ढा , गहरा - मैला 
तो पकी चिकनी सड़कों का मोह 
तुमको कभी सताएगा 


ये शनासाई की उम्मीदें 
मरासिमों के कंधो का सुकूत
फिर मानूस ख़ंजर ऐसे भी 
सम्भला तो मर जाएगा 
(शनासाई - acquaintance 
मरासिम - relations
सुकूत-silence, peace
मानूस -associated, familiar, intimate, friendly)

जब उम्र यूँ बढ़ती जाएगी 
और साल गुज़रते जाएँगे 
अपने पैरों में दम रखना 
कोई हाथ पकड़ चलाएगा 


रस्ते तो मुश्किल होते ही हैं 
रस्ते में कब तक और रहें
रस्ता जहाँ पे ख़त्म हुआ 

तो लौट के घर ही आएगा