Saturday 4 November 2017

गुब्बारे




जो फूँक लगे तो फूल के कुप्पा हो जाते थे
हमको छुप्पन छुप्पा का खेल भुलाते थे
तिफ़्ल हसरतों के पंख बन उग आते थे
कम पैसों में आते थे , अब्बा की जेब को भाते थे
रंग बिरंगे पर सादा से , बस मुस्काते थे
मरते मरते बस एक ज़ोर की आवाज़ लगाते थे
कभी कभी तो पानी और रंग भी बरसाते थे
मेरे बचपन वाले तो बस प्यार सिखाते थे
मैं बस दूर से निहारती थी , वो मुझे बुलाते थे
छोटे की माउज़र गन की ख़ातिर, हम उनसे नज़र चुराते थे
मानो जैसे जीते जागते हँसी के फुव्वारे थे
बस ऊपर को ही उड़ना सिखाते गुब्बारे थे ...


Wednesday 4 October 2017

काश की मैं दोषी



काश की मैं दोषी 
और तुम ख़ुदा रहते 
इस कहानी में तुम 
हर इल्ज़ाम से जुदा रहते 
इससे अच्छा तो वो 
नासमझी का दौर ही था 
मैं अपने नसीब पे 
ख़ूब इतराया करती थी 
ख़्वाबीदा , बेहोश 
काशाने सजाया करती थी 
हक़्क़-आशना की लेहरें 
उजाड़ कर गई हैं 
मुझे तख़्त से उतार के 
बेज़ार कर गई हैं 
कुछ नया नहीं 
सब लम्हे फ़सुर्दा रहते 
मेरे आज कल सब 
तुम्हारे सपुर्दा रहते 
मैं टूटा सफीना 
तुम नाख़ुदा रहते 
काश ! की मैं दोषी 
तुम ख़ुदा रहते 

(काशाने - dwelling 
हक्क़ -आशना— knowing the truth 
सफ़ीना - boat
नाख़ुदा - sailor ) 

Wednesday 2 August 2017

जैसे एक ही पल में

जैसे एक ही पल में सब समझने लगी हूँ....

रस्म-ओ-रिवाज़ , दुनिया-दारी
आखिर एक लड़ाई मैंने भी हारी

बोलने से पहले बहुत सोचने लगी हूँ
जाने कितनी रातें बेचैनी में जगी हूँ

पहले का हर ग़म तिफ़्ल सा जान पड़ता है
मेरा गुस्सा अब हर बात पे ज़िम्मेदारी से लड़ता है

ज़ेहन अब शाबाशी की राह नहीं ताकता
मेरी निसाबों से तेरा वज़ूद है झांकता

तेशा की नोक पे है ज़माने का इन्साफ
अब "बिन माँ के बच्चों" की गलतियां की जाएंगी माफ़ !

जाने कितने मश्वरों के क़र्ज़ भरने होंगे !
लफ्ज़ जुबां के सिरे पे ही ठहरने होंगे

मैं जो गिर जाऊं तो मुझे आप ही उठना होगा
खुद दवाई लगानी होगी , जो छिला घुटना होगा

वो नखरे मेरे , शिकायतें सब , कुछ बोलती नहीं
ये दुनिया कहाँ तेरे जैसी है , जो मुझे तोलती नहीं

अब कहाँ तेरी बाहों का झूलना होगा
लोग कहते हैं की अब घर को भूलना होगा

बाहें खोल देता है , जो थक के आओगे
वो घर ही भुलाओगे , तो कहाँ जाओगे !

ये फर्नीचर ,दीवार ,दरवाज़े,आचार का मर्तबान
सब बोलने लगे हैं , तेरी ही जुबान  !

जन्नत बनाई ,पर वहाँ रहने वाला बाशिंदा ही नहीं
शहर में लगता है कोई अब ज़िंदा ही नहीं

बहुत आवाज़ें दी थीं , कितना चिल्लाई थी
पहली  बार तूने ऐसी की रुस्वाई थी

मेरा खुदा नहीं है अब , कोई डर भी नहीं है साथ
नशेमन का नसीब , लो किस्मत के है हाथ
(नशेमन- the nest )

अब मेरे सर से ले कर पाँव तक, हर जगह तू है
सर का आसमान, तले  ज़मीन, ये  फ़िज़ा तू है

मुझे पता है , 'उसके' अद्ल  की कमर हुई है टूटी
दिल के बहलाने को एक राह थी, वो भी निकली झूठी
(अद्ल- justice , equity , fairness )

कोई पूछे तो कह देती हूँ , 'ठीक हूँ मैं '
खिल्क़त के सवालों में कौन गँवाए समय  !
(खिल्क़त- people, the world , दुनिया के लोग , सृष्टि )

सब न-महसूस कर देती  हूँ ,खला ,दर्द ,फासुर्दा मिन्नतें
जाने कहाँ से आती हैं ऐसी हिम्मतें

तुझसे जुड़ी लकीर ढूंढ़ती रहती हूँ अपने हाथ
शायद तू आए, तुझसे वाबस्ता किसी ज़िक्र के साथ

अब क्या करूँ ! सब हार के ज़ाफ़रीन हो गई हूँ
देख ! तुझसे अल्हैदा हो कर , मैं कितनी ज़हीन हो गई हूँ !
(ज़ाफ़रीन- victorious )

Saturday 20 May 2017

एक आसान सी ज़िन्दगी

एक आसान सी ज़िन्दगी जैसे हासिल ही है
मुसलसल सी एक तलाश की मंज़िल ही नहीं

बना कर जिस्म मिट्टी का , फ़ौलाद भरा सीने में
मेरी उस माँ की नेमतों के तू काबिल ही नहीं

नापी कितनी चौखटें , झुकाया सर को सजदे में
न गाया हो तेरा किस्सा , ऐसी महफ़िल ही नहीं

न जुबां पे आता है, न दिल में समाता है
बराबर सख़्त है ये डर , सिर्फ संगदिल ही नहीं

धौंकनी सी चलती है , दिन रात सीने में
इस मामले में चलो माना ! ,मुझसा बुज़दिल ही नहीं

ज़रा धीरे चल ज़िन्दगी , सँभलने का तो मौका दे
नहीं ये खुशदिली की राह , सफ़र कामिल ही नहीं
(कामिल - complete , perfect )

ख़ुदी को बना के ख़ुदा , ख़ुद  का ही सहारा है
सबक़ आसान था , पर मुझसा कोई जाहिल ही नहीं 

Friday 17 February 2017

तेरी नज़र की कलम


तेरी नज़र की कलम अब वो नज़्म नहीं लिखती

जिसके हर मोड़-मिसरे पे कभी मेरा ठिकाना था


सच है , कागज़ की कश्ती की उम्र बहुत नहीं होती

पर दिल के सुकून का ये मश्ग़ला पुश्तों पुराना था


सफ़ेद चादर की दीवारों में मैंने खुद को खोया था

मेरी कलम में उतर आएगा ये जो भी फ़साना था


इस जहाँ से उस जहाँ को जोड़ती हैं बस साँसें

जो साँसों तक सिमटे , क्या इश्क़ फरमाना था  ?


अभी तू खुश हो जा कातिल , चेहरे को रौनक दे !

तेरे इस बेकदर कहर का भी अंजाम आना था


बहुत मिल जाएंगे मुझे तुझसे , तुझे मुझसे लेकिन

मुझे तुझसा , यूँ मिल के भूलने का , हुनर कमाना था


नहीं कोई कहानी है , तेरे मेरे हिस्से आई

पर लगता है की जैसे कोई एक पूरा ज़माना था  


मुझे यादों से यूँ तो कोई ज़्यादती नहीं तकलीफ

पर जैसे जान पे बनी थीइनका  कर  जाना था  ||


-अनुष्का