Thursday 25 June 2015

नहीं मायूसियों में यूँ ही घुलते जाइए




नहीं मायूसियों में यूँ ही  घुलते जाइए 
संभावनाओं  का  नगर है , चले आइये 
किस्मतों पे लगे ताले की चाबी है जुनूं तेरा 
जो कदम बढ़ाइये , तो रुक नहीं फिर जाइये 


दिल लगाया है तो टूटने का डर नहीं करना 
आने-जाने हैं ये लोग इनमें घर नहीं करना 
बिन चोट खाए , न सीख पाए , ये हुनर कोई 
जो इश्क़ है तो इश्क़ के सभी रिवाज़ निभाइए 


शब-भर हैं बरसे बादल जैसे हैं कोई सपना  
इन इतने अपनों में , जाने कौन है अपना !
मुस्कान लबों पे, चेहरे पे सादगी की रौनक़ 
बेदर्द ज़माने को यही हाल दिखाइए 


दरगाह पे जो हैं बांधे मन्नतों के धागे 
और दिए जलाए कितने उसकी जन्नतों के आगे 
किसी झोंके से बुझ जाएं तो वहम  नहीं करना 
धागों के खुलने की  आस में न उम्र गँवाइये 


ये आज की बातें और ये आज के हम-तुम 
मासूम किसी घाव पे , लग रहा मरहम 
ये सिर्फ़ मेरा है , मुझमें पोशीदा सा शामिल
हर सफ़्हे कलम की स्याही में , इसको पाइए 


एक उम्र मु'यस्सिर नहीं , क़र्ज़ चुकाने को 
हर काम जो करते हो बस 'फ़र्ज़' निभाने को 
कभी सिर्फ़ यूँ-ही हँस दीजिये , ज़िन्दगी तोहफ़ा है 
पीछे छोड़ के सब दर्द-गुमां , सिर्फ़ आप आइये ..  


अना-परस्त हैं आँखें , न मुड़ कर भी देखेंगी 
सब सूखी यादें एक दिन , ये निकाल फेकेंगी 
मेरी बेरुखी जब तुम कभी देखोगे तो जानोगे 
एक जिस्म , कई इंसान हूँ , आप जान बचाइये !!



पोशीदा - invisible
मु'यस्सिर - effective
अना-परस्त - egoist

Saturday 20 June 2015

मैं इंसान हूँ ! -- For all the lovely girls and ladies and woman out there !



नहीं कोई ठोकर खाया पाँव हूँ 
न ही नासूर बनता घाव हूँ 
नहीं कोई जल गई रोटी की ज़िल्लत 
न ही छोटे बालों की फजीहत
न मेरे गेंहुए रंग को लजाइये
वो आड़ी-तिरछी लिखावट पर मत जाइए
शायद डिग्रियों का ढेर न हो पाऊँ
और सलीके से शायद हर बात न कह पाऊँ
नहीं हूँ केवल अंग्रेजी बोलते हिचकते होंठ
और बदन एक छुपा सा , सलवार कमीज की ओट
नहीं कोई अक्षर एक कंधे पे गुदा हुआ
न ही सुनहरे-रंगे बालों में कुछ छुपा हुआ
इस घर में ठहरे कुछ  सालों की मेहमान नहीं
चेहरे कम देखे हों , फितरतों से अनजान नहीं
 मोटर दौड़ाती कोई वाहियात ग़लती नहीं हूँ
हमेशा ही आँसू देख कर पिघलती नहीं हूँ




मैं आँखों में चमकते सितारे हूँ
जिस्म में छुपे हिरन मतवारे हूँ
ख्यालों का बंजारापन हूँ
वक़्त से कदम मिलाता आवारापन हूँ
ये चूड़ी बिंदी गहने-गांठे मेरे अरमान हैं
फिर मैंने ही तुमको अर्पित किये सम्मान हैं
मैं हूँ मुस्कानों के कंवल
मेरे आँखों में बसते कल के महल
मैं कर्तव्यों को खुद में समाये एक जहां हूँ
न कोई देवी , न धरोहर , न ही महान हूँ
ग़लतियों पर झेंपती , फिर नई दौड़ को तैयार हूँ
अश्क़ों को नहीं मैं बनाती हथियार हूँ
तस्वीरों  में खुद को क़ैद करती एक याद हूँ
ये कालिख़ आपकी नज़रों से हट जाए, ये फ़रियाद हूँ
कोई उलझी पहेली नहीं, एक कहानी आसान हूँ
एक छोटी सी सूचना  , सबसे पहले मैं एक इंसान हूँ