Wednesday 4 October 2017

काश की मैं दोषी



काश की मैं दोषी 
और तुम ख़ुदा रहते 
इस कहानी में तुम 
हर इल्ज़ाम से जुदा रहते 
इससे अच्छा तो वो 
नासमझी का दौर ही था 
मैं अपने नसीब पे 
ख़ूब इतराया करती थी 
ख़्वाबीदा , बेहोश 
काशाने सजाया करती थी 
हक़्क़-आशना की लेहरें 
उजाड़ कर गई हैं 
मुझे तख़्त से उतार के 
बेज़ार कर गई हैं 
कुछ नया नहीं 
सब लम्हे फ़सुर्दा रहते 
मेरे आज कल सब 
तुम्हारे सपुर्दा रहते 
मैं टूटा सफीना 
तुम नाख़ुदा रहते 
काश ! की मैं दोषी 
तुम ख़ुदा रहते 

(काशाने - dwelling 
हक्क़ -आशना— knowing the truth 
सफ़ीना - boat
नाख़ुदा - sailor )