Thursday 1 October 2015

तुम्हारी बातें

तुम्हारी बातें


तुम्हारी बातें , जैसे
हर पहर की सॉंस
मौसमों का रास
रंगों का उजलापन
यौवन का कच्चापन
कुछ ठहरी , कुछ अनवरत
वरक की चमचमाती परत
कभी किसी किताब की उतरन
और मन में होती छन छन
कंचन सी कुछ पकी हुईं
कुछ खरीदी और बिकी हुईं
अक्सर न समझ आती हैं
न जाने कैसी ये बातें हैं !