Thursday 8 October 2020

हम

दो अलग अलग रंग रूप के कप , 

हर शाम की एक चाय 

साथ में पीते हैं 

कुछ यहाँ वहाँ की हाँकते हैं ..

एक दूसरे की ज़द में 

मुसलसल ही झाँकते हैं 

कुछ मसलों पर एक सी आह भरें

कुछ पर खनक भी जाते हैं .. 

फिर एक ही ट्रे में हो कर सवार 

सब रंज-शिकायतों के धब्बे 

सिंक में बहा आते हैं .. 

दोनों की अपनी दास्तान 

दोनों का अन्दाज़ निराला है 

जैसे ये साथ निभाने का 

वादा सा कर डाला है 

क्या इन्हें देख कर तुमको 

“हम” याद नहीं आते ?