Friday 29 August 2014

एक दिन.…

एक दिन.………

एक दिन हम फरार पत्तों से ....
छोड़ कर पेड़ों की पनाह
उलझ कर हवा से.…
अलविदा कह महफूज़ कोख़ को.....
उड़ जाएंगे लापता  … एक दिन।

एक दिन ख़ामोश बैठे हुए...
गीली रेत में लिपटे पाँव…
ख़ुशक हवा को ओढ़े ज़ुल्फ़
आँखों में नीलापन समेटे....
समुन्दर से सूरज उगाएँगे…  एक दिन।

एक दिन जब तनहा झोंके में.....
शगुफ़्ता गीतों की सरगम उगेगी
मेरे कानों को बस उसी की तलब.....
मदहोश सन्नाटों के जहां में.…
एक परछाईं से घर बनाऊँगी… एक दिन।

एक दिन मैं कदम बढ़ाऊँगी…
 कागज़ पे खुद बिछ जाऊँगी …
कलम से तुम्हें बनाऊँगी....
तस्वीर हो चाहे मुख़्तसर...
पर मैं तुम्हे समझ जाऊँगी… एक दिन।

एक दिन सब मुफ़्त होगा …
साँसो में न कुफ़्र होगा …
लह्ज़ो में न होगी तल्ख़ी  …
आँखों में लफ्ज़ भर के  …
हर कहानी को अंजाम दिखाऊँगी … एक दिन। 

2 comments:

  1. Hi.. Dirgha told me about u that u write really well..
    seriously u r amazing.. trying to learn from u.. keep up the good work.
    Wish u luck... :) :)

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    1. thanku so much.. such comments and responses only are the soul of inspiration i get.. keep reading Sugandha.. its my pleasure :)

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