Wednesday 31 July 2013

बूंदे









कांच पर खरौंदे बनती बूँदें
हर बार की कोशिश , बार बार की कोशिश
फिसलती, संभलती
यहाँ - वहाँ भागती ,
फिर उस पार से झाँकती ,
बदहवास बूँदें ।।



बेपहरी नींद से जागती बूँदें ,
खुदी में मेरे अक्स को बांधती बूँदें
हिल मिल कर सफ़र नापती बूँदें ,
टपक कर आसरे से ख़ाक में दफ़न होना है
ये नायाब बसीरत बाँटती बूँदें ।।


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