Tuesday 8 September 2015

कारवाँ

एक  धूल छोड़ जाता है 
हवा के दामन में 
क्या इसके सिवा पाइए 
गुज़रे जो कोई कारवाँ 

कोई रात का हिस्सा होगा 
कोई दिन होगा अलसाया सा 
बस ये ही सामान है 
संग ढ़ोता अपने कारवाँ 

मासूमियत के पलने में
खेली थी तिफ़्ल सी हसरत
दिन डूबे तो दिल सा मुरझाया
उम्र सा थका है कारवाँ

कुछ बात ले के आया था
कुछ याद दे के जाएगा
आई-गई दुनिया 'औ तुमसा
रिवायतों का मारा कारवाँ

चलना ही है मक़सद  यहाँ
मुस्तक़िल कुछ भी नहीं
पानी के शहर  छोड़ने को
मजबूर है ये कारवाँ

कोई अदावत का ग़िला नहीं
कोई दोस्ती का सिला नहीं
एक रुकी हुई सी राह का
हमसफ़र रहा है कारवाँ

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