Wednesday 4 May 2016

ये भक्ति है

मंदिर में जा कर
एक  सुकून मिला ,
पत्थर को सजा कर...
उतार के सब लकीरें
अपने माथे से,
उसके पैरों में रख आए हैं।
देखो ! हमने "फ़र्ज़" निभाए हैं !
उसको नींद जगाने को,
ज़ोर से एक घंटे की मूँछ भी खींची
फिर हिला के अपने हाथ
सब पाप-मैल वहीँ झाड़ दिया
हाथ हलके किये ,
आखिर  नए "कर्मों" को भी जगह चाहिए !
अपना माथा लाल रंगा
बाहर बैठे कुछ टेढ़ी लकीरों वाले हाथों में
कुछ सीधी लकीरों वाले हाथों ने
परोपकार बरसाया !
बस अब सब साफ़ है पाक है
ये भक्ति है , क्या समझे मज़ाक है ??

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