Thursday 24 July 2014

A poem by Surya Kumar Pandey





गॉंव में मैं गीत के आया, मुझे ऐसा लगा ,

मेरा खरापन शेष है .. 




वृक्ष था मैं एक , पतझड़ में रहा मधुमास सा ,

पत्र - फल के बीच यह जीवन जिया संन्यास सा ,


कोशिशें बेशक मुझे जड़ से मिटने की हुई ,


मेरा हरापन शेष है !




सीख पाया मैं नहीं इस दौर जीने की कला,

घोंट पाया स्वार्थ पल को भी मेरा गला ,


गागरें रीतीं न मेरी किसी प्यासे घाट पर ,


मेरा भरापन शेष है !

- Surya Kumar Pandey

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