गॉंव में मैं गीत के आया, मुझे ऐसा लगा ,
मेरा खरापन शेष है ..
वृक्ष था मैं एक , पतझड़ में रहा मधुमास सा ,
पत्र - फल के बीच यह जीवन जिया संन्यास सा ,
कोशिशें बेशक मुझे जड़ से मिटने की हुई ,
मेरा हरापन शेष है !
सीख पाया मैं नहीं इस दौर जीने की कला,
घोंट पाया स्वार्थ पल को भी मेरा गला ,
गागरें रीतीं न मेरी किसी प्यासे घाट पर ,
मेरा भरापन शेष है !
- Surya Kumar Pandey
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