Thursday 24 July 2014

... तो फ़र्क पड़ता




मेरे चेहरे के उजाले क्यूँ तुमको बुलाते हैं ?
कभी मेरे मन का अँधेरा रिझाये तो फ़र्क पड़ता..


यूँ उगते हुए सूरज को निहारा सबने ..
कभी छिपते को सर झुकाते तो फ़र्क पड़ता..


तुम्हारे दिन ने अनेक चेहरो पे मुस्कान देखी है
कभी इस रात में सिलवटें गिन पाते तो फ़र्क पड़ता..


दोस्ती दर्द दरियादिली सभी देखा हमने
महसूस न हो जब कुछ,तब आह सुन जाते तो फ़र्क पड़ता..


राहें महकती थी, बागों में जब बहारें बिखरी थीं
पतझड़ में कोई तितली ही मानते तो फ़र्क पड़ता..


मेरी मुस्कान ठगती है दुनिया भर क चोचले..
लबों में दबी शिकायतों को सिल पाते तो फ़र्क पड़ता..


मुझे अब फ़र्क नहीं पड़ता , इसके आने उसके जाने से
'गर ठहाकों में ना गुम जाती हिचकियाँ तो फ़र्क पड़ता..

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