Monday 18 May 2015

कुछ तुम , कुछ मैं !!



कुछ तुम कह लेना 
कुछ मैं सुन लूँगी 
एक ग़ज़ल सी , स्याही में घुल कर 
किताबों में गुनगुनाउँगी 
और उधड़े ख़्वाब बुन जाऊँगी  

कुछ तुम मेरे पास आओगे
कुछ मैं पास आऊँगी
फिर तारीक़ बंद कमरों में
जाने कितनी रातें जला कर
रोशिनी को पी जाऊँगी  

कुछ को समझौतों का नाम देंगे
कुछ को कह देंगे वक़्त की ज़रूरत
फिर दोस्ती के वरक में
कुछ ज़्यादा को लपेट कर
मन के टूटे कनस्तर में रख भूल जाऊँगी  

कुछ तुम तवाज़ुन बरतना
कुछ मैं  कदम जमाऊँगी
बारिशों के मौसम में
एक बार जो पौधा लगाया था
उसी के हरे खून में बेतुक रंगी जाऊंगी  




2 comments:

  1. i liked d words u hav used

    just mind blowing (Y)

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    1. thanx again @mohammed iliyas.. and ur words are big time encouragement for me.. thanku for taking out some time , read and comment.. m truly obliged 😊 :)

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