Saturday 30 May 2015

वो एक लम्बी नदी सी


वो एक लम्बी नदी सी बिछी हुई है ज़मीं पे
उफ़ान का मौसम है , ये बदली भी बरसती है

उसे फ़लक पे जकड़ो चाहे , या ढूँढो गर्भ में धरती के
एक बूँद है बारिश की  , मुट्ठियों में कहाँ फंसती है

आज किसी के हुए जाते हैं , कल के बड़े वादे हैं
ये गुलज़ार सा रास्ता है , पर वफ़ा बड़ी सस्ती है

अभी कच्चे हैं पर सादे हैं, सागर से इरादे हैं
किस किस का मुँह ताकेंगे ! अब बस मैं-मेरी कश्ती है

 नुक़्ताचीन है दुनिया ! सबकी अपनी कहानी है
उस राह मिलूंगी मैं , जहाँ से शाम गुज़रती है

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