Wednesday 20 May 2015

तुम अब भी वही हो



जब भी तुम्हें देखती हूँ
एहसास होता है 
तुम अब भी वही हो ...

मासूम सी आँखें 
शरारत भरी मुस्कान 
वो लाल जैकेट का खड़ा कॉलर 
और, बालों का वही स्टाइल 
वही बेकूफ सा फूहड़ लड़का ..

पर अफ़सोस है 
की ज़िन्दगी अपनी यूँ ही बिताओगे 
काले चश्मे से ही धूप छिपाओगे 
मुझसा मुक़द्दस मुख़लिस नहीं पाओगे 
एक दिन ये समझ जाओगे 

तुम आज भी उतने ही जाहिल हो 
रिश्तों के ख़लूस से महरूम 
बाज़दफा फिर भी लगता था  
अलाहदा है सबसे तुम्हारा ज़िक्र 
शायद न समझ पाई तुमको ; थी फ़िक्र 


पर आज.....

आओ तुम्हें माथे पे बोसा  दे 
विदा कर दूँ इस बवंडर के परे 
सुनो , तुममें-मुझमें बस ये ही एक-सा है 
मैं आज भी वही हूँ 
और तुम अब भी वही हो 

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